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क्या खुब कहा है किसी ने, बीतता वक़्त है, लेकिन। ख़र्च हम हो जाते हैं। कैसे "नादान"है हम दुःख आता है। तो,"अटक" जाते है! औऱ सुख आता है तो "भटक" जाते हैं।
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जो समय "चिंता" में व्यतीत होता है वह "कूड़ेदान" में जाता है और जो समय "चिंतन" में व्यतीत होता है वह "तिजोरी" में जमा होता है।
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बल और शक्ति की आज्ञा टालना आसान है मगर प्यार की आज्ञा टालना आसान नहीं हैं। लक्ष्य अगर सर्वोपरि है तो फिर आलोचना तारीफ विवेचना कुछ मायने नहीं रखती है l
” खुशियों” का ताल्लुक “दौलत” से नही होता जिसका मन “मस्त” है उसके पास “समस्त” है।