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पुण्य किसी को दगा नहीं देता और पाप किसी का सगा नहीं होता जो कर्म को समझता है उसे धर्म को समझने की जरूरत ही नहीं संपत्ति के उत्तराधिकारी कोई भी या एक से ज्यादा हो सकते है लेकिन कर्मों के उत्तराधिकारी केवल हम स्वयं ही होते है l
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स्वभाव सूर्य जैसा होना चाहिए, न उगने का अभिमान और न डूबने का गम जीने का यही अंदाज रखो । जो तुम्हे ना समझे, उसे नजरअंदाज रखो। देने के लिए कुछ न होतो सामने वाले को सम्मान दे, यह भी बड़ा दान होगा।
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"वक्त" भी बड़े ही कमाल का होता है, सबसे इंतजार करवा लेता है लेकिन खुद कभी किसी का इंतजार नही करता।
खुशी थोड़े समय के लिए संतुष्टि देती है, और संतुष्टि हमेशा के लिए खुशी देती है।