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जिंदगी में रिश्तों का स्वाद हर रोज बदलता रहता है, कभी मीठा, कभी खारा, कभी तीखा, पर ये स्वाद इस बात पर निर्भर करता है कि हम प्रतिदिन अपने रिश्तों में क्या मिला रहे है।
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"अच्छाई-बुराई" "इंसान" के "कर्मो" में होती है। कोई "बांस" का "तीर" बनाकर किसी को "घायल" करता है, तो कोई "बांसुरी" बनाकर बांस में "सुर" को भरता है।
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सही "मौके" पर "खड़े" होकर बोलना एक "साहस" है उसी प्रकार "खामोशी" से बैठकर दूसरों को "सुनना" भी एक "साहस" है।