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विश्वास तो दर्पण है- तोडो तो पहले जैसा रूप नहीं, जोड़ो तो पहले जैसा अक्स नहीं।
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"बहस" और "बातचीत" में एक बड़ा फर्क है "बहस" सिर्फ़ यह सिद्ध करती है, *कि "कौन सही है" । जबकि "बातचीत" यह तय करती है,कि "क्या सही है"।
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"कल्पनाएं" लिखना जितना आसान होता है, "भावनाएं" लिखना उतना ही मुश्किल। मौन और मुस्कान दोनो का इस्तेमाल कीजिए, मौन, रक्षाकवच है, तो मुस्कान, स्वागत द्वार।
दुःख और तकलीफ़ “भगवान” की बनाई गई वह प्रयोगशाला है। जहाँ आपकी काबिलियत और आत्मविश्वास को परखा जाता है।