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जो समय "चिंता" में व्यतीत होता है वह "कूड़ेदान" में जाता है और जो समय "चिंतन" में व्यतीत होता है वह "तिजोरी" में जमा होता है।
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सच्चे व्यक्ति का व्यक्तित्व नमक की तरह अनोखा होता है, जिसकी उपस्थिति याद नही रहती, मगर उसकी अनुपस्थिति प्रत्येक चीज को बेस्वाद बना देती है।
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"अच्छाई-बुराई" "इंसान" के "कर्मो" में होती है। कोई "बांस" का "तीर" बनाकर किसी को "घायल" करता है, तो कोई "बांसुरी" बनाकर बांस में "सुर" को भरता है।
क्रोध हमारा एक ऐसा हुनर है, जिसमें फंसते भी हम हैं, उलझते भी हम हैं, पछताते भी हम हैं, और पिछड़ते भी हम ही हैं।