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हम न नास्तिक है न आस्तिक, हम तो केवल वास्तविक है। जो अच्छा लगे उसको ग्रहण करो, जो बुरा लगे उसका त्याग करो फिर चाहे वो विचार हो, कर्म हो, या धर्म हो।
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ज्ञान से शब्द समझ में आते हैं, और अनुभव से अर्थ इंसान भी बहुत कमाल करता है, किसी को पसंद करें तो बुराई नहीं देखता, और जिससे से नफ़रत करे तो उसकी अच्छाई नहीं देखता।
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समस्याओं का अपना कोई साईज नही होता। वो तो सिर्फ हमारी हल करने की क्षमता के आधार पर छोटी और बडी़ होती है।