भगवान महावीर

भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस में हुआ था। यही वर्द्धमान बाद में इस काल के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी बने। जैन ग्रंथों के अनुसार, २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हो जाने के २७८ वर्ष बाद इनका जन्म हुआ था।

महावीर ने 30 वर्ष की आयु में माता पिता की निधन के बाद सन्यास से लिया | 12 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद भगवान महावीर को त्रिजुपलिका नदी के किनारे साल के पेड़ के नीचे तपस्या करते हुए सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ. तीर्थंकर बनने के बाद महावीर ने धर्म की एक अलग राह दिखाई|

मंत्र साधना कैसे करें : मंत्र साधना से पहले उस स्थान/क्षेत्र के रक्षक देव से प्रार्थना करें। मंत्र साधना एकांत में करें।
मंत्र जाप से पहले रक्षा मंत्र- सरलीकरण कर अपनी रक्षा करें। जिन कपड़ों को पहनकर मंत्र साधना करें, वे शुद्ध हों। जप जाप कर चुकें तो उन्हें अलग उतार दें, दूसरे वस्त्र पहन लिया करें। यह वस्त्र नित्य हर दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहना करें। ब्रह्मचर्य से रहें।
मंत्र में जिस रंग की माला लिखी है, उसी रंग का आसन, धोती-दुपट्टा भी उसी रंग का हो तो श्रेष्ठ रहता है। आसन सबसे अच्‍छा डाभ का माना जाता है। मंत्र पद्मासन में बैठकर जपें। बायां हाथ गोद में रखकर दाहिने हाथ से जपें। जो मंत्र बाएं हाथ से जपना लिखा हो, तो वहां दाहिना हाथ गोद में रखकर, बाएं हाथ से जपें। जहां स्वाहा लिखा हो, वहां धूप से जपें। इस प्रकार मंत्रों से अनेक कार्य सिद्ध होते हैं।
केवल ज्ञान प्रश्न चूड़ामणि एक लघुकाव्य चमत्कारी ग्रंथ है। इसमें मंत्र सिद्ध करने के मुहूर्त के विषय में उल्लेख है कि निम्नलिखित नक्षत्रों, वारों में यदि उल्लेखित तिथियों का सुयोग रहा तो मंत्र सिद्ध करने हेतु उपयुक्त काल माना जा सकता है।
उत्तराफाल्गुनी हस्त, अश्चिनी, श्रवण, विशाखा तथा मृगशिरा नक्षत्रों में से कोई एक नक्षत्र रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार अथवा शुक्रवार के दिन पड़ रहा हो और उसी दिन द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी अथवा पूर्णिमा की ति‍थियां पड़ रही हों, तो मंत्र सिद्धि के लिए योग बन सकता है।
साथ ही संबंधित जातक की कुंडली में उत्तम ग्रहों की महादशा, अंतरदशा, प्रत्यत्तर दशा, सूक्ष्म दशा तथा प्राणदशा का सुयोग भी बन रहा है। भद्रबाहु संहिता दिगंबर जैन परंपरा के प्रसिद्ध आचार्य श्रुतकेवली भद्रबाहु द्वारा लिखी गई है।
कोई इन्हें प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर का समकालीन व उनका भ्राता भी कहते हैं। इस ग्रंथ के अनुवादक एवं संकलनकर्ता पं. नेमीचंद्र शास्त्री का कथन है कि यह ग्रंथ 8वीं-9वीं शताब्दी का है।
प्रस्तुत ग्रंथ में 68वां श्लोक-
इत्येवं निमित्तकं सर्वं कार्यं निवेदनम। मंत्रोऽयं जपित: सिद्धूयैद्वांरस्य प्रतिमाग्रत:।।
अर्थात इस प्रकार कार्य सिद्धि के लिए निमित्तों का परिज्ञान करना चाहिए। निम्न मंत्रों की भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा के सम्मुख साधना करना चाहिए। मंत्र जाप करने से ही सिद्ध हो जाता है।
अष्टोत्तरशतैर्पुस्पै: मालतीनां मनोहरै:।
ॐ ह्रीं णमो अरिहताणं ह्रीं अवतर अवतर स्वाहा।
मन्त्रेणानेन हस्तस्य दक्षिणस्य च तर्जनी।
अष्टाधिकशतं वारमभिमन्तर्य मषीकृतम।। 69 ।।
अर्थात् भगवान महावीर स्वामी की प्रतिभा के समक्ष उत्तम मालती के पुष्पों से ‘ॐ ह्रीं अर्हं णमो अरिहताणं ह्रीं अवतर अवतर स्वाहा।’ इस मंत्र का 108 बार जाप करने से मंत्र सिद्ध हो जाएगा। पश्चात मंत्र साधक अपने दाहिने हाथ की तर्जनी को 108 बार मंत्रित कर रोगी की आंखों पर रखें।
फिर इस मंत्र के प्रभाव का अनुभव करें। जैन दृष्टि में संहिता ग्रंथों में अष्टांग निमित्त ऋषिपुत्र, माघ नंदी, अंकलंक भट्टवोसरि आदि के नाम संहिता ग्रंथों के प्रणेता के रूप में प्रसिद्ध हैं।

भगवान महावीर के सर्वबाधा निवारक घंटाकर्ण मंत्र को रोजाना इक्कीस बार जाप करने से आपके मन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाएं, जैसे- चोरी का भय, राज भय, आग अथवा सर्प भय एवं भूत-प्रेत आदि की समस्त बाधाएं दूर होकर मनुष्य अपनी सारी परेशानियों से मुक्ति पा सकता है।

ॐ घंटाकर्णो महावीरः सर्वव्याधि-विनाशकः।
विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष-रक्ष महाबलः ॥1॥
यत्र त्व तिष्ठसे देव! लिखितो ऽक्षर-पंक्तिभिः।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात पित्त कफोद्भवाः ॥2॥
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपात्क्षयम्‌।
शाकिनी-भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति नो ॥3॥
नाकाले मरण तस्य, न च सर्पेण दृश्यते।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्वीं श्रीं घंटाकर्ण।

णमोकार मंत्र- मूल मंत्र
जैन धर्मावलंबियों की मान्यतानुसार मूल मंत्र णमोकार मंत्र है। इसी से सभी मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। एक णमोकार मंत्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ना चाहिए।
पहली श्वास में- णमो अरिहंताणं- उच्छवास में- णमो सिद्धाणं
दूसरी श्वास में- णमो आयरियाणं- उच्छवास में- णमो उव्ज्झायाणं
तीसरी श्वास में- णमो लोए उच्छवास में- सव्वसाहूणं
णमोकार मंत्र में 35 अक्षर हैं। णमो- नमन कौन करेगा? नमन् वही करेगा, जो अपने अहंकार का विसर्जन करेगा। णमोकार मंत्र में 5 बार नमन् होता है। 5 बार अहंकार का विसर्जन होता है। णमोकार महामंत्र बीजाक्षरों (68) की से विलक्षण है, अलौकिक है, अद्भुत है, सार्वलौकिक है।

णमोकार मंत्र में एक ऐसा संगीत है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा के परिपूर्ण है ही, साथ ही आप अपनी अंतरात्मा में झांकिए और अहसास कीजिए- क्या आप अध्यात्म की उन बुलंदियों को छूने को आतुर तो नहीं हैं? यदि हां, तो मंत्र जाप की चादर ओढ़कर णमोकार मंत्र का समाधिस्थ होकर जाप करें।

जैन संसार में विजय पहुत स्तोत्र  की साधना की बड़ी महिमा है। हर हुं ह: सर सुं स: ॐ क्लीं ह्रीं हुं फट् स्वाहा। इस मंत्र का जाप करने से अत्यंत कुपित शत्रु भी प्रसन्न हो जाता है।

‘ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुंड स्वामिने नम:’ इस मंत्र का सवा लाख जप करने से कठिन कार्य सिद्ध हो, दरिद्रता दूर हो, लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। यह जाप 21 दिन में पूर्ण करें, एक बार भोजन करें, ब्रह्मचर्य से रहें और भूमि पर शयन करें।

सर्व कार्य सिद्धि के लिए ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं बलूम (ब्लूम) अहं नम:’ इस मंत्र का तीनों काल सवेरे, दोपहर और सायंकाल 108 जाप करने से सर्व कार्य की सिद्धि होती है और दीपमाला से 3 दिन पहले एक समय भोजन करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें, 3 दिन तक लगातार 11,000 जाप करें। बड़ी दीपावली की रात को पूजन के समय अपनी बही में केसर या अष्टगंध से यह मंत्र लिखें।