जीवन की उत्पत्ति से लेकर मानव जीवन के विकास यात्रा की संपूर्ण कहानी में नदियों का योगदान, उनका महात्म्य रचा बसा हुआ है। अनेक विकसित संस्कृतियों का उत्थान और पतन नदियों के ऊपर ही निर्भर रहा है। वैसे तो धरा पर अनेकानेक नदियों का प्रादुर्भाव हुआ है जो छोटी-बड़ी विविध प्रकार की हैं किंतु कुछ नदियों का महात्म्य गंगा जी की तरह अत्यधिक है एवं ये सभी नदियां अपने-अपने क्षेत्र में गंगा जी की ही तरह महत्वपूर्ण है। मानव जीवन का ज्यों-ज्यों विकास होता गया त्यों-त्यों नदियों के अस्तित्व पर संकट बढ़ता गया। आज हालात इस स्तर पर पहुंच गए हैं कि अनेक नदियां तो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती देखी जा सकती हैं। कंक्रीट के उगे विशालकाय मानव निर्मित जंगल भी नदी तट पर ही पनपे हैं और नदियों को गंभीर तरह से प्रदूषित कर उनको मिटाने पर तुले हुए हैं। क्योंकि नदियों की हालत बद से बदतर होती चली जा रही है फलतः इस पर बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिकों, चिंतकों, पर्यावरणविद तथा पर्यावरण प्रेमियों और शासन-सत्ता पर आसीन सामर्थ्यवानों द्वारा नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की जाने लगी है साथ ही इनके निवारण हेतु योजनाएं भी बनने लगी हैं एवं तरीके खोजना भी प्रारंभ हुआ है। नदियों के प्रदूषण को लेकर आम जनमानस में बेचैनी बढ़ने लगी है इसीलिए एक-एक कर अनेक मनीषी, बुद्धिजीवी, पर्यावरण प्रेमी इस दिशा में आगे आने लगे हैं। बड़े शहरों में ही यह चेतना विकसित नहीं हुई है अपितु छोटे-छोटे शहरों में भी नदियों को प्रदूषण से निजात दिलाने हेतु सच्चे मन से गंभीर प्रयास किए जाने लगे हैं।

प्राचीन ग्रंथों में कच्छप वाहिनी यानी कछुओं के प्राकृतिक निवास स्थली के नाम से जानी जाने वाली माँ गोमती (Gomti River) का हृदय स्थल तक आज कूड़े-कचरों के अंबार से पटा दिखता है। अनेक शहरों से होकर गुजरने वाली इस नदी में जबरदस्त मात्रा में सीवर और गंदा पानी मिल रहा है। आदि गंगा माँ गोमती अन्य नदियों की तरह ही मानव विकास के साथ-साथ उसकी ज्वर ग्रस्त सोच का शिकार होती चली गई जिससे स्थिति भयंकर हो गई तथा आज स्वयं के लिए एवं मानव अस्तित्व के लिए नियत सीमा से भी आगे की तरफ पहुंचने की हालत हो गई ।

काल खंड के माथे पर पताका फहराने वाले कर्मठ तपस्वी सदैव रहे हैं एवं सन्नध हो बिना दोषारोपण के बड़ी समस्याओं से लड़ते रहे हैं। पालनहार प्रकृति के प्रति मानवीय उपस्थिति का अहसास मौजूद रहे इसे ऐसे मनीषियों ने ही इंसानियत का पहलू समझ अपनी निःस्वार्थ साधना को सदैव ही साधा है। इसी पावन विचार से सर्व कल्याणकारी पावन सलिला माँ गोमती के कल्याण के लिए एक वैचारिक क्रांति का आगाज हुआ। इस क्रांति के जनक बने उत्तर प्रदेश प्रान्त के जनपद सुल्तानपुर के नायाब कुछ चुनिंदा युवा। सुल्तानपुर स्थित गनपत सहाय पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज (Ganpat Sahaai P. G. College, Sultanpur) में भूगोल विभाग में सेवारत डॉ दिनकर प्रताप सिंह जी (Dr. Dinkar Pratap Singh) ने इसकी कल्पना को हकीकत में बदलने का बीड़ा उठाने का बेमिसाल कार्य किया। आपके साथ कुछ अति योग्य, कर्मठ, समर्पित, ईमानदार व्यक्तित्व कंधे से कंधा मिलाकर आ खड़े हुए, जिसमें मुख्य प्रमुख हैं- अधिवक्ता श्री रुद्र प्रताप सिंह जी, श्री सालिक राम प्रजापति जी, श्री दशरथ सिंह जी, श्री राजेश पाठक जी, उद्यमी श्री संत कुमार सोनी जी, श्री रमेश माहेश्वरी जी तथा शासकीय सेवारत श्री राजेन्द्र शर्मा जी। इस टीम ने माँ गोमती को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अपने जीवन को सौंप देने का अटल प्रण लेते हुए अविलंब कार्य क्षेत्र को बखूबी अंजाम देना शुरु कर दिया। इस हेतु आप सभी द्वारा औपचारिक तौर पर 30 अप्रैल 2012 को गोमती मित्र मंडल समिति कुशभवनपुर, सुल्तानपुर (Gomti Mitra Mandal samiti Kushbhavanpur, Sultanpur) नाम से एक संस्था बनाई गई।

स्थापना के साथ ही समिति ने अपना कार्य युद्ध स्तर पर प्रारंभ कर दिया। सौभाग्य से आम जनमानस ने इसे बखूबी समझा तथा तीव्र गति एवं बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ते चले गए। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही नदी का जो तट कूड़े-कचरे, पालीथीन आदि से पटा रहता था आज वही स्थान लहलहाते बाग-बगीचे, फल-फूल, लुप्तप्राय पौधों की विभिन्न प्रजातियों से सभी को आकर्षित कर रहा है। गोमती मित्र मंडल समिति कुशभवनपुर द्वारा विभिन्न प्रकार के पौधों जैसे पीपल, तुलसी आदि को तैयार कर आमजन, शैक्षणिक संस्थाओं, सामाजिक संस्थाओं आदि को निःशुल्क वितरित किया जा रहा है। दुर्गा पूजा के दौरान समापन के अवसर पर मूर्तियों का विसर्जन नदी में ही किया जाता रहा है जिससे नदी के अविरल प्रवाह को तो बाधा पहुंचती ही है साथ ही जल की निर्मलता को भी गहरा नुकसान होता है। दिनोंदिन यह समस्या विकराल स्वरूप ग्रहण करती जा रही थी इसलिए गोमती मित्र मंडल समिति ने यह तय किया कि इस दिशा में भी गंभीर प्रयास किया जाए। अपनी इसी सोच को अमलीजामा पहनाते हुए इसके समस्त सदस्यों ने यह तय किया कि नदी के किनारे कुछ ऐसे स्थान बनाए जाएं सिर्फ वहीं मूर्तियों का विसर्जन हो, इस कार्य को पूरा करते हुए समिति ने इसमें काफी सफलता भी पाई।

समिति के समस्त सम्मानित सदस्यों ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री यही तक नहीं कर ली है अपितु अनेक सामाजिक सरोकारों से भी अपने को जोड़ा है। मसलन बेहद गरीब, निराश्रित, वृद्धजन, बच्चों आदि के हितार्थ भी बढ़-चढ़कर कार्य किए जा रहे हैं। इस प्रकार आज यह समिति अपने सम्मानित सदस्यों और इसके प्रमुख सेनापति डॉ. दिनकर प्रताप सिंह जी के कुशल तथा कर्मठ मार्गदर्शन में दिन-प्रतिदिन नूतन आयाम छू रही है।