उच्च कोटि के भोजन, आवास एवं वस्त्र की सुविधा से युक्त करोड़ों लोग भारत देश में मौजूद हैं लेकिन करोड़ों लोगों के लिए दो जून की रोटी, एक छोटा सा बसेरा एवं तन ढकने के लिए वस्त्र उपलब्ध कराने के लिए सोचने वालों का आज अभाव सा हो गया है। स्वयं की बेहतरी के लिए समस्त समाज आज पागल सा हो गया है परंतु जिस समाज के बूते बड़ी से बड़ी मंजिल व्यक्ति प्राप्त करता है उसी के लिए कुछ करने का दौर समाप्त सा होता दिखता है। लेकिन ऐसा भी नहीं कि भारत भूमि ऐसी प्रतिभाओं से विहीन हो गई है, अभी भी यदा-कदा, ऐसे महापुरुष जन्म लेते रहते हैं जिनके जीवन का उद्देश्य ही असहाय, निराश्रितों की सेवा करना है। ऐसे देवदूत समाज की चकाचौंध से दूर अपने कार्य में सन्नद्ध रहते हैं बिना किसी ख्वाहिश के, हाँ तमन्ना इतनी भर होती है कि कोई भूखा न रहे, अभावग्रस्त न हो, मानव को मिलने वाली मौलिक जरूरतों से वंचित न रहे।

अपने शौर्य और वीरगाथा के लिए उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध स्थल महोबा (Mahoba, Uttar Pradesh) विश्व प्रसिद्ध रहा है। पीढ़ी दर पीढ़ी लोग यहाँ के नायकों के किस्से, कहानियों एवं जनश्रुतियों के माध्यम से सुनते रहते हैं। हमारे देश में अभी भी मनोरंजन के ऐसे साधन तथा लोक कलाएं जीवंत रूप में है जिनमें महोबा का योगदान स्पष्ट तौर पर झलकता है। यह भी सत्य है कि अपने एतिहासिक गौरव की सुनहरी यादों से नई पीढ़ी को ऊर्जान्वित करने वाला यह इलाका आज भी विकास के पैमाने पर पिछड़ा नजर आता है। जीवन की मूलभूत सुविधाओं के लिए जिन मानकों का उपयोग किया जाता है उन पर यह इलाका खरा नहीं उतरता है। भूख इंसान की ही नहीं समस्त जीवो की आवश्यकता होती है। भोजन का अभाव इहलोक और पारलौकिक दोनों ही जगत से क्षुब्ध कर देता है। भूख विविध प्रकार के विकारों की जननी बनती देखी सुनी जाती है। मानव विकास सूचकांक का मुख्य बिंदु भूख को ही बनाया गया है तथापि बहुतायत में ऐसी आबादी है जो भूख से ग्रस्त है। चिकित्सा भी इंसानी जरुरत में प्रमुख स्थान रखती हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इससे भी सभी सेवित नहीं हो पाते हैं। जीवन रूपी नौका बिना भोजन, कपड़ा और दवा के नहीं चलती है। इसको उपलब्ध कराना कोई खेवनहार ही कर सकता है। अफसोसजनक यह है कि खेवनहारों का घोर अभाव दिखता है लेकिन परमपिता-परमेश्वर यदा कदा ऐसे देवदूतों को हम सभी के बीच भेज देता है।

महोबा में किताबों की दुकान चलाकर जीवन यापन करने वाले श्री स्वामी प्रसाद जी की जीवन संगिनी शकुंतला देवी जी की गोद में 1977 के जून महीने की 7 तारीख को एक बालक का जन्म हुआ। जैसे ही स्कूल जाने योग्य आयु हुई पिताजी ने निकट स्कूल में दाखिला करा दिया और नाम रखा गया तारा (Tara)। उस समय किसी को भी एहसास नहीं था कि आगे चलकर यह बालक लाखों मनुष्यों की जिंदगी को एक चमचमाते तारे के भांति रोशन करेगा। यह दैदीप्तिमानन ‘तारा’ न केवल उनका अपितु संपूर्ण क्षेत्र, प्रदेश तथा देश का नाम रोशन करेगा।

इंटर तक की पढ़ाई महोबा से करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए आप इलाहाबाद विश्वविद्यालय (University of Allahabad) चल दिए। शुरुआत में डॉक्टर बनने की अभिलाषा थी लेकिन परमपिता परमेश्वर की रचना तो निराली है सो वर्ष 1986 के आस-पास आप बीमार हो गए और इलाहाबाद छोड़ना पड़ा। कुछ समय तो निराशा में बीता लेकिन चाह मे राह दिख ही जाती है। तारा जी लखनऊ में आकर रहने लगे और वही से उच्च शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा के दौरान ही आपके मन में सेवा की भावना हिलोरे मारने लगी। ज्यों-ज्यों आप आगे बढ़ते गए, त्यों-त्यों यह भावना और बलवती होती गई। कुछ दिनों तक आपने विविध प्रकार के कार्य किए लेकिन मन सदैव अपने इलाके के विकास में ही लगा रहता था। लोगों को रोटी, कपड़ा और चिकित्सा उपलब्ध हो इसके लिए आप सदा चिंतित रहते थे। अंततः इस दिशा में कार्य करने हेतु आप पूर्ण रूपेण तैयार हो गए और यह तय कर लिया कि अब जीवन का उद्देश्य अपने इलाके की सेवा करना ही है इसके लिए चाहे जो कुर्बानी देनी पड़े, देंगे। आपने ताउम्र अविवाहित रहने का भी संकल्प लिया।

अब आपने अपने कार्यों को आंदोलन के रूप में परिवर्तित करने का निर्णय लिया। प्रारंभ में तो लोग साथ नहीं थे लेकिन धीरे-धीरे आपकी सच्ची एवं निःस्वार्थ लगन, त्याग को देखते हुए आपके साथ लोग जुड़ते चले गए और कारवां बनता गया। तारा जी अर्थात श्री तारा पाटकर जी ( Mr. Tara Patkar) ने अपने आंदोलन के 3 मुख्य बिंदु तय किए, प्रत्येक व्यक्ति को भोजन मिले, उसे तन ढकने के लिए कपड़ा मिले तथा बीमारी की दशा में चिकित्सा उपलब्ध हो इस दिशा में आप तेजी से लग गए। 15 अप्रैल 2015 को आपने अपने साथियों के साथ एक अनोखा लेकिन दुर्गम कार्य करने को सोचा, काम था रोटी बैंक (Roti Bank) की स्थापना। धन की व्यवस्था हेतु शायद इतनी मशक्कत न करनी पड़े जितनी रोटी के लिए करनी पड़ती है। आपकी बात को लोगों ने समझा और आपका यह रोटी बैंक तेजी से अपने मार्ग पर चल पड़ा। रोटी बैंक के लिए जगह-जगह भोजन एकत्रित करने के लिए बॉक्स रखवाये गए जहां लोग भोजन पहुंचाते फिर वहां से निर्धन, वृद्धजन, बेसहारा लोगों को भोजन उपलब्ध किया जाने लगा। भोजन के साथ आप दवा एवं वस्त्र की भी व्यवस्था करने का भरसक प्रयास करते हैं। आपके इस पुनीत कार्य में बहुतायत संख्या में लोग खुशी-खुशी सहयोग करते हैं।

महोबा का इलाका अभी भी अन्य बुनियादी सुविधाओं के साथ चिकित्सा सुविधा से भी मरहूम है। फलतः आबादी का एक बड़ा हिस्सा इलाज के अभाव में जबरदस्त रोग ग्रस्त होता रहता है। आपने अनेक प्रयास करने के बाद महोबा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medicine Science) स्थापित किए जाने के लिए संघर्ष करने का अत्यंत ही कठिनतम फैसला लिया। इसके लिए आप अपने साथियों संग अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठने का निर्णय लिया। इस दिशा में आपके नेतृत्व में विविध प्रकार के कार्य संपादित किए जाते हैं। 18 भाषाओं में लाखों पत्र प्रधानमंत्री जी को लिखे गए। बहनों ने हजारों की संख्या में प्रधानमंत्री जी को राखी भेजी। हिंदुओं ने बड़ी संख्या में रोजा रखा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AlIMS) की स्थापना के लिए सुहागिन महिलाओं ने हजारों की संख्या में करवा चौध का व्रत रखा। इस तरह आप अपने पथ पर अडिग एवं अटल हैं। आपने यह निर्णय लिया है कि जब तक महोबा में AlIMS की स्थापना नहीं हो जाती है तब तक नंगे पैर ही रहेंगे।

बड़ी-बड़ी संस्थाओ के माध्यम से पद धारण कर, सुविधाओं का सहारा प्राप्त कर मानव सेवा का दिखावा करने वालों के अलावा ऐसे सच्चे संन्यासियों की तरफ नीति नियंतावों का ध्यान यदि आकृष्ट हो तो भारत जगद्गुरु अवश्य बन सकता है।