साहित्य का संबंध अंतःकरण से होता है तथा एक सच्चे साहित्यकार को युगबोध के संवाहक के रूप में देखा जाता है। अनेक साहित्यकार एवं कवि हैं जो समय की भयावह व्यापकता और गहराई को परिभाषित करने की कोशिश करते रहते हैं लेकिन ऐसे भी साहित्यिक मनीषी हैं जो समय के विकराल स्वरूप से निपटने में अपने को केवल साहित्यकार के तौर पर ही नहीं अपितु मानवता के सच्चे सिपाही की तरह खपा दिया।

एक ऐसी शख्सियत जिन्हें हम जब गायों की सेवा करते देखेंगे तो कोई गौपालक समझेगा, वृक्षों की सेवा करते देखेंगे तो पर्यावरण प्रेमी समझेगा, गाँव में घूम-घूम कर महिलाओं को विभिन्न बीमारियों एवं बुराइयों के प्रति जागरूक करते देखेंगे तो कोई स्वयंसेवी या सामाजिक कार्यकत्री समझेगा तथा कोरोना से निपटने के लिए घर पर अपने हाथों से मास्क सिलते देखेगा तो कुशल ग्रहणी समझ बैठेगा, परंतु इन समस्त कार्यों में सतत रत जिन शख्सियत का वर्णन है वह मानवीय संवेदना से निष्ठ उत्कृष्ट साहित्यिक मनीषा एवं गणपत सहाय पोस्ट ग्रैजुएट कॉलेज, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हिंदी विभाग की अध्यक्ष (HOD, Department of Hindi, Ganpat Sahay Post Graduate College, Sultanpur, Uttar Pradesh) के पद पर आसीन प्रोफ़ेसर नीलम तिवारी जी (Professsor Neelam Tiwari) हैं।

फैजाबाद, उत्तर प्रदेश में पूरा बाजार के निवासी तथा जनपद सुलतानपुर में एडवोकेट श्री घनश्याम पाण्डेय जी एवं श्रीमती कमला देवी जी (गृहणी)  के आंगन में 29 जून 1966 को जन्मी प्रो. नीलम तिवारी जी पति देव नितेश, व्यवसायी
ने हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट करने के बाद एक निष्णांत साहित्यकार के रूप में हजारों-हजार छात्र-छात्राओं का मार्गदर्शन कर उनके जीवन को तो संवारा ही है साथ ही मानवीय सरोकारों से घनिष्ठता के साथ सन्नद्ध होते हुए मानवता की मिसाल भी प्रस्तुत कर रही हैं। हिंदी साहित्य की प्रोफेसर के रूप में आपकी एक उत्कृष्टम पहचान है। समय-समय पर अनेक साहित्यिक यज्ञ के आयोजन से साहित्य सागर को समृद्ध करने में भी आप सन्निविष्ट रहती हैं।

साहित्य सेवा के साथ-साथ सामाजिक समरसता तथा मानवीय संवेदना की सजग प्रहरी के रूप में भी आप नियति के सहारे न बैठ कर खुद को तपस्या की अग्नि में झोंके रहती हैं। आपके स्नेहिल आशीष से बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं का भविष्य संवर रहा है तथा आपके सानिध्य में शिक्षा ग्रहण करके छात्र-छात्राएं उच्च पदों पर आसीन हो रहे हैं।

आपका दायरा यही तक नहीं सीमित नहीं है अपितु जैसे ही आपको यह पता चलता है कि कोई छात्र या छात्रा आर्थिक विषमता के कारण आगे नहीं बढ़ पा रही है आप स्वयं उससे मिलकर व्यक्तिगत तौर पर मदद करती हैं तथा उसे मंजिल प्राप्त करने हेतु एक माँ की तरह सतत संबल प्रदान करती हैं। इसी प्रकार किसी कारणवश आर्थिक संकट से गुजर रहे व्यक्तियों को भी हर संभव मदद करती रहती हैं। गाँव-गाँव जाकर आप विशेषकर महिलाओं को नाना प्रकार की बीमारियों, सामाजिक विसंगतियों के प्रति समझाती हैं, सचेत करती हैं तथा शिक्षा का महत्व समझाती हैं।

विश्वव्यापी कोरोना की आपदा से आपने हार न मानते हुए इससे लड़ने का फैसला किया एवं लोगों को जागरुक करते हुए अपने स्तर से बड़ी संख्या में सेनेटाइजर, मास्क आदि का वितरण घूम-घूम कर करती रहती हैं। इस दौरान ढेर सारे लोगों को आप आर्थिक रुप से भी सहयोग करती रहती हैं परंतु आपका प्रयास यही रहता है कि आपके कार्यों को प्रचारित- प्रसारित न किया जाए। छोटी-छोटी बस्तियों, ग्रामीण क्षेत्रों में आपको जीवंत देवी के रूप में देखा जाता है तथा शिक्षित वर्ग के मध्य श्रेष्ठतम साहित्यिक मनीषा की अग्रिम पंक्ति का संवाहक माना जाता है। आपकी इस साधना में पेशे से व्यवसाई पतिदेव श्री नितेश कुमार जी सहित दोनों पुत्र भी प्रतिभाग करते हैं।

आज जिस प्रकार मानवता की परिधि संकुचित होकर निजता की सूनी गुफा में दम तोड़ती दिखाई पड़ती है ऐसे में प्रोफ़ेसर नीलम तिवारी जी द्वारा अमानवता की दुर्गम घाटी में लुढ़क रही मानवता को स्नेहिलमय, दृढ़ता पूर्वक सम्बल देना, घुप्प अंधेरे में मौजूद प्रकाश स्तंभ की तरह प्रतीत हो रहा है।