“मेरा-मेरा ही होता था बाकी सब हिस्सा बंटता था” जिनके जीवन में माता-पिता का प्यार इस कदर समाया था तो भला उन्हें इस बात का कैसे भान होता कि आगे चलकर परमपिता परमेश्वर उनके डगर को काफी कंकरीली-पथरीली करने जा रहे हैं।
अयोध्या जनपद के मिल्कीपुर तहसील के अंतर्गत एक छोटे से गाँव बांसगाँव के रहने वाले शिक्षक, प्रकांड विद्वान, मनीषी श्रीयुत पंडित खुशीराम द्विवेदी जी की धर्मपत्नी श्रीमती सूर्यवती देवी जी की गोद में वर्ष 1984 के माह जुलाई की पांच तारीख को डॉक्टर कुसुम मानसी द्विवेदी जी (Dr. Kusum Mansi Dwivedi) का जन्म हुआ।

शैशव काल से ही असाधारण प्रतिभा की स्वामिनी डॉ. कुसुम मानसी द्विवेदी जी कैशोर्य काल में ही उम्दाकोटि की रचनाएं करने लगीं थीं। आपको गाँव से दूर पढ़ने के लिए जाना पड़ता था। इंटर की पढ़ाई के दौरान परिस्थितियों ने भरपूर अड़चन डालने की कोशिश भी की लेकिन अनंत व्योम में उड़ने के लिए तैयार हो रहे इस परिंदे को क्षणिक संकट डिगा सकने वाले नहीं थे। हाई स्कूल में प्रवेश करते-करते विचारों को कविता के रूप में ढालने के लिए आप व्यग्र हो उठीं और आपने अपनी पहली रचना लिखी। गाँव में अंधे विकास को देखकर उस समय एक ऐसी रचना आपके नाजुक मस्तिष्क में उत्पन्न हुई जिसे आज भी सुन कर लोग द्रवित हो जाते हैं “कि कहीं मेरा गाँव शहर न हो जाए।”
उस समय लिखी आपकी इन पंक्तियों को आज मंचों पर मानक रचना के रूप में माना जाता है। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान ही मात्र 21 वर्ष की आयु में ही आपका प्रथम काव्य संग्रह “एक अंजुरी धूप” प्रकाशित हुआ जिससे आपकी प्रतिभा को देखकर समस्त साहित्य समाज और बौद्धिक जगत दंग रह गया। आगे चलकर आपने चार विषयों से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की तथा डॉक्टरेट की उपाधि भी अर्जित की। ढेर सारी महिलाओं के दर्द को बयां करते हुए आपकी यह रचना लोगों को द्रवित कर देती है, “रावण का राज नहीं रामजी के राज में अपने ही घर से निकाली गई जानकी।”

आज डॉ. द्विवेदी जी एक साहित्यिक सितारा के रूप में प्रसिद्ध हैं। भांति-भांति के सम्मान से आपको प्रायः नवाजा जाता रहता है। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का अत्यन्त गरिमामय पुरस्कार “रांगेय राघव अवार्ड” (Rangey Raghav Award) आपको प्रदान किया जा चुका है। देश के कोने-कोने में डॉ. कुसुम मानसी द्विवेदी जी एक बेमिसाल शख्शियत के रूप में स्थापित हो गई हैं। आपके द्वारा लिखी गई पुस्तक “शिक्षा मनोविज्ञान” तथा “शिक्षा तकनीक” विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं। इस प्रकार अटल, अविचल इरादों वाली, चिपथगा की तरह निर्मल, बसंत की हरीतिमा सम अपनी मनमोहक आत्मीयता से दूसरों का दुख हरने वाली, समाज की बुराइयों को वैचारिक गंगाजल से पवित्र कर समाज को एक नई रोशनी दिखाने वाली डॉ. कुसुम मानसी दिवेदी जी महिलाओं के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह दैदीप्यमान हैं।